MERA MANKAPUR

नीले अम्बर के नीचे कुछ रीती कुछ भीगी सी यादों की इक रात हुई है
कुछ खट्टी मीठी सी स्मृतियों की बरसात हुई है🌷🌷🌷🌷🌷
*अषाढ़ 12जुलाई 1986*🌷🌷🌷 एक साथ   सब आए संग साथ में ज्वाइन किया साथ साथ हास्टल पाये🏵️🏵️🏵️
*विजयश्री ज्योत्सना ,प्रीति विभा मंजू सविता*,
*करुणा उषा आरती अंजना  अर्चना कविता*
*अंजू माधवी मिनाक्षी ममता मधु रीता*,
*रश्मि रुबाना पंकज पूर्ति ज्योति अनुपमा रविता*
*शशि सपना मीरा वंदना उमा अनीता सुनीता*
*उर्मिला निर्मला सुमन मंजू*
*फूल सुनीति कुसुम दीपिका अंजू* 🤹‍♀️🤹‍♀️🤹‍♀️🤹‍♀️🤹‍♀️🤹‍♀️🤹‍♀️🤹‍♀️🤹‍♀️🤹‍♀️🤹‍♀️🤹‍♀️🤹‍♀️🤹‍♀️
आदि ढेरों संग सहेलीं थीं
 आए थे सब अलग जगह से फिर भी नहीं  अकेली थीं 
*मंशा मैडम अंजुम मैडम और गीता जी*
*(राधा तृप्ति बीना रीता) जी*            हम सभी की संरक्षक थीं 
ये सब हम सबकी मार्गदर्शक थीं 
हर तरह ऊँच नीच समझाती थीं
टीमलीड मेन्टोर का धर्म निभातीं थीं
💓💓मनकापुर था हमारा *मन का पुर*💗💗💗💗💗💗
  जहाँ सौम्य सुरम्यता बसती थी
दसों दिशा में उड़े खुश्बुएँ
राज रौनकें करतीं थीं ♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️
कुछ दूरी पर था करखाना दस मिनट में जाते 
लंच करते कैन्टीन का *एक रूपये में* 
पाँच बजे सब साथ में हँसते गाते  आते 🏃‍♀️🏃‍♀️🏃‍♀️🚴‍♀️🚴‍♀️
इंतज़ार शनिवार का रहता खाना संग बना करता था 
कभी कभी तो रात12बजे भी
कुकर बोला करता था
इसी तरह हर शाम संग सहेली खुशियाँ खूब मनाते थे 
जहाँ भी हो जैसा भी हो जो हो मिल जुल कर सब खाते थे🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
*एक रुपये में एक लीटर दूध* आया करता था
दिनेश  सुरेश  दूध  लाया करता था
 हरी सब्जियों और फलों का अकाल पड़ा करते थे
एक पंडित जी से अक्सर सब्जी के रेट पे लड़ा करते थे 🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵
जबकि रोज शाम 6बजे शापिंग बस मनकापुर जाया करती थी
पर नये नये थे सभी जाने से घबराते थे
ऊपर से माहौल गाँव का अजूबा सा लगता था
अनजाने डर के कारण मनकापुर से कतराते थे🤢🤢🤢🤢
 इसी तरह से मिल जुलकर दिन काटा करते  थे
हंसी खुशी के सभी पलों को आपस में बांटा करते थे💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃
शनिवार की रात को खाना जल्दी बनाते 
*एक रुपये की तीन पिक्चर VCR* मँगाते 
हास्टल की छत पर बैठ सब पिक्चर देखा करते 
पिक्चर के चलते नमकीनपैकेट चट कर जाते 
🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳🥳
 रविवार सुबह9बजे टीवी रूम में जगह घेरने भाग के जाया करते ,,
*रामायण* न छूट जाये बस यही मनाया करते अगर कोई सीन छूट जाये तो फुर्सत में आपस में  सुनाया करते 
बीत गए सब दिन वो सुहाने बस *यादें ही बाकी पर ये यादें भी दिल बहलाने को काफी हैं*
समय पखेरू अपने पंख फैला कर भागा
सब तो अपनी दुनिया में रम गये
*रह गया बस प्रीतपगा यादों का धागा* 
*इसी डोर से बंधे रहे सब एक माला में जुड़े रहें* 
*हर सुख दुख में साथ सदा ही खड़े रहें*
एक डोर है अपनेपन का सबने इसे निभाया है
लगता है सब सहोदर है कोई नहीं पराया है
*इस मनकापुर में हम सबने सुंदर समय बिताया है*
*जायेगें जब इसे छोड़ कर लगेगा जैसे मायका हो रहा पराया है*😔😔😢😔😔
 🏵️🏵️*मन  का  पुर*🏵️🏵️  
 *स्वरचित* *उषा गोयल "अजीत "*दि 24/7/21*

*सभी संग सहेलियों  को समर्पित*
* *मेरा मनकापुर*संकलनके तारतम्य में *मेरी रचना [*वाह रे हमारा मनकापुर*]*की अपार प्रशंसा के बाद  ये भी एक परिदृश्य प्रस्तुत है,,आशा है आप सभी की पुरानी यादें एकबार फिर जीवन्त हो उठेगीं🙏🏻🙏🏻😍😍🙏🏻🙏🏻

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